बदलाव की आहट है पूर्वांचल टाकीज की बेटा
बैनर : पूर्वांचल टॉकीज
लेखक : शशिरंजन द्विवेदी
गीतकार : प्यारेलाल यादव कवि जी व श्याम देहाती
संगीतकार : ओम झा
निर्देशक : विशाल वर्मा
निर्माता : विकास कुमार
कलाकार : दिनेश लाल यादव निरहू, आम्रपाली दुबे, अंजना सिंह, अशोक समर्थ, अनूप अरोड़ा , पवन राजपूत और किरण यादव.
भोजपुरी फिल्मो का जिक्र आते ही लोगो के जेहन में भद्दे तरह से फिल्माए गए गाने , डबल मीनिंग संवाद , अत्यधिक हिंसा आदि आदि घूमने लगता है । एक धारणा सी बन गयी है की भोजपुरी सिनेमा उन दर्शको के लिए है जिन्हें सिनेमाई भाषा में फ्रंट बेंचर कहा जाता है । ऐसे में साफ़ सुथरी या सार्थक फिल्मो की कल्पना नहीं की जा सकती है लेकिन समय समय पर कुछ ऐसी भी फिल्में आती है जो भोजपुरी सिनेमा की श्रेणी में फिट नहीं बैठती । नयी नवेली फ़िल्म निर्माण कंपनी पूर्वांचल टाकीज की दुसरी फ़िल्म ' बेटा ' भी उसी श्रेणी की फ़िल्म है जो छठ महापर्व के अवसर पर बिहार में रिलीज़ हुई है । मुम्बई और यु पी में यह फ़िल्म दीपावली के अवसर पर रिलीज़ हुई थी ।
बेटा कहानी है एक ऐसे गाँव की जहा का मुखिया ( अशोक समर्थ ) अपने किसी भी प्रतिद्वंदी को पनपने नहीं देता । गाँव के ही एक शिक्षक बदलाव के इरादे से चुनाव लड़ने का मन बनाता है लेकिन मुखिया के आदमी उनकी ह्त्या कर देते हैं । शिक्षक की गर्भवती विधवा ( किरण यादव ) उन पर बुरी नज़र रखने वाले मुखिया के नशेड़ी भाई की ह्त्या कर देती है । उन्हें सजा होती है और जेल में ही एक बेटे को जन्म देती है । वह अपने भाई ( अनूप अरोरा ) को अपना बेटा ( निरहुआ ) सौप देती है । निरहुआ की परवरिश बनारस में होती है । निरहुआ एक आम बनारसी युवक है जिससे एक लड़की गुड़िया ( अंजना सिंह ) प्यार करती है पर निरहुआ का दिल तो किसी दुसरी लड़की किरण ( आम्रपाली दुबे ) पर आ जाता है । कहानी में ट्वीस्ट तब आता है जब पता चलता है की आम्रपाली दुबे उसी मुखिया की बेटी है जिसने उनके बाप का क़त्ल किया था । और फिर शुरू होती है बदले की कबायद । बेटा की कहानी पूरी फ़िल्मी है जो आम तौर पर कई फिल्मो में इस तरह की कहानी समय समय पर देखने को मिलती है । लेखक शशिरंजन द्वेदी ने इसे एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है लेकिन भोजपुरी फ़िल्म होने के कारण भोजपुरिया कहानी का मोह वे त्याग नहीं पाये हैं । मध्यांतर तक फ़िल्म हंसी मजाक मस्ती के साथ आगे बढ़ती है पर उसके बाद नज़र आता है निरहुआ का रौद्र रूप जहां एक्शन इमोशन और ड्रामा तीनो है । जहा तक अभिनय की बात है निरहुआ ने अपने किरदार के हर रूप में जान डाल दिया है चाहे वो ठेठ बनारसी युवक हो , शाहरुख खान की अदा की कॉपी करने वाला एक प्रेमी हो या फिर अपने बाप की ह्त्या का बदला लेने वाला एक बेटा । दोनों अभिनेत्री आम्रपाली दुबे और अंजना सिंह के जिम्मे हालांकि कुछ करने या अपना हूनर दिखाने के लिए बहुत कुछ नहीं है फिर भी दोनों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है । अशोक समर्थ एक समर्थवान अभिनेता हैं । भोजपुरी की यह उनकी दुसरी फ़िल्म है । इसके पूर्व वे पटना से पाकिस्तान में पाकिस्तानी के किरदार में दिख चुके हैं और दर्शको का दिल जितने में सफल हुए हैं । बेटा में भी वे अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं । निरहुआ के दोस्त के रूप में पवन राजपूत ने काफी प्रभावित किया है । किरण यादव , अनूप अरोरा सहित फ़िल्म के सारे किरदार ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है । फ़िल्म के निर्देशक विशाल वर्मा हैं जिन्हें अच्छा तकनीशियन कहा जाता है और उन्होंने बेटा में इसे प्रूव भी किया है । पूरी फ़िल्म एक भव्य कैनवास पर शूट की गयी लगती है । फ़िल्म के संगीतकार हैं ओम झा । हालांकि कई गानो में हिंदी फिल्मो की कुछ धुनों की झलक मिलती है लेकिन उन्होंने भोजपुरी फोक और हिंदी की धुनों का एक अच्छा मिश्रण तैयार किया है जो अच्छे फिल्मांकन की वजह से परदे पर देखने और सुनने में अच्छा लगता है ।ना तो गानो के बोल में और ना ही फिल्मांकन में कही अश्लीलता नज़र आती है । बारिश के एक गाने को भी सलीके से फिल्माया गया है । निर्माता विकास कुमार की यह दुसरी फ़िल्म है । पहली फ़िल्म साजन चले ससुराल 2 में भी अश्लीलता नज़र नहीं आई थी और फ़िल्म अच्छी चली थी । बेटा भी उसी राह पर है जो उन निर्माता निर्देशको को मुहतोड़ जवाब है जो कहते हैं भोजपुरी में साफ़ सुथरी फ़िल्म नहीं चलती है । अगर बड़े स्टार के साथ साफ़ सुथरी और अच्छी फिल्में बनायी जाए तो भोजपुरी फिल्में अपने ऊपर लगे अश्लीलता का दाग धोने में सफल होगी । बेटा को इसी बदलाव की आहट मान कर चलना चाहिए ।
उदय भगत
बैनर : पूर्वांचल टॉकीज
लेखक : शशिरंजन द्विवेदी
गीतकार : प्यारेलाल यादव कवि जी व श्याम देहाती
संगीतकार : ओम झा
निर्देशक : विशाल वर्मा
निर्माता : विकास कुमार
कलाकार : दिनेश लाल यादव निरहू, आम्रपाली दुबे, अंजना सिंह, अशोक समर्थ, अनूप अरोड़ा , पवन राजपूत और किरण यादव.
भोजपुरी फिल्मो का जिक्र आते ही लोगो के जेहन में भद्दे तरह से फिल्माए गए गाने , डबल मीनिंग संवाद , अत्यधिक हिंसा आदि आदि घूमने लगता है । एक धारणा सी बन गयी है की भोजपुरी सिनेमा उन दर्शको के लिए है जिन्हें सिनेमाई भाषा में फ्रंट बेंचर कहा जाता है । ऐसे में साफ़ सुथरी या सार्थक फिल्मो की कल्पना नहीं की जा सकती है लेकिन समय समय पर कुछ ऐसी भी फिल्में आती है जो भोजपुरी सिनेमा की श्रेणी में फिट नहीं बैठती । नयी नवेली फ़िल्म निर्माण कंपनी पूर्वांचल टाकीज की दुसरी फ़िल्म ' बेटा ' भी उसी श्रेणी की फ़िल्म है जो छठ महापर्व के अवसर पर बिहार में रिलीज़ हुई है । मुम्बई और यु पी में यह फ़िल्म दीपावली के अवसर पर रिलीज़ हुई थी ।
बेटा कहानी है एक ऐसे गाँव की जहा का मुखिया ( अशोक समर्थ ) अपने किसी भी प्रतिद्वंदी को पनपने नहीं देता । गाँव के ही एक शिक्षक बदलाव के इरादे से चुनाव लड़ने का मन बनाता है लेकिन मुखिया के आदमी उनकी ह्त्या कर देते हैं । शिक्षक की गर्भवती विधवा ( किरण यादव ) उन पर बुरी नज़र रखने वाले मुखिया के नशेड़ी भाई की ह्त्या कर देती है । उन्हें सजा होती है और जेल में ही एक बेटे को जन्म देती है । वह अपने भाई ( अनूप अरोरा ) को अपना बेटा ( निरहुआ ) सौप देती है । निरहुआ की परवरिश बनारस में होती है । निरहुआ एक आम बनारसी युवक है जिससे एक लड़की गुड़िया ( अंजना सिंह ) प्यार करती है पर निरहुआ का दिल तो किसी दुसरी लड़की किरण ( आम्रपाली दुबे ) पर आ जाता है । कहानी में ट्वीस्ट तब आता है जब पता चलता है की आम्रपाली दुबे उसी मुखिया की बेटी है जिसने उनके बाप का क़त्ल किया था । और फिर शुरू होती है बदले की कबायद । बेटा की कहानी पूरी फ़िल्मी है जो आम तौर पर कई फिल्मो में इस तरह की कहानी समय समय पर देखने को मिलती है । लेखक शशिरंजन द्वेदी ने इसे एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है लेकिन भोजपुरी फ़िल्म होने के कारण भोजपुरिया कहानी का मोह वे त्याग नहीं पाये हैं । मध्यांतर तक फ़िल्म हंसी मजाक मस्ती के साथ आगे बढ़ती है पर उसके बाद नज़र आता है निरहुआ का रौद्र रूप जहां एक्शन इमोशन और ड्रामा तीनो है । जहा तक अभिनय की बात है निरहुआ ने अपने किरदार के हर रूप में जान डाल दिया है चाहे वो ठेठ बनारसी युवक हो , शाहरुख खान की अदा की कॉपी करने वाला एक प्रेमी हो या फिर अपने बाप की ह्त्या का बदला लेने वाला एक बेटा । दोनों अभिनेत्री आम्रपाली दुबे और अंजना सिंह के जिम्मे हालांकि कुछ करने या अपना हूनर दिखाने के लिए बहुत कुछ नहीं है फिर भी दोनों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है । अशोक समर्थ एक समर्थवान अभिनेता हैं । भोजपुरी की यह उनकी दुसरी फ़िल्म है । इसके पूर्व वे पटना से पाकिस्तान में पाकिस्तानी के किरदार में दिख चुके हैं और दर्शको का दिल जितने में सफल हुए हैं । बेटा में भी वे अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं । निरहुआ के दोस्त के रूप में पवन राजपूत ने काफी प्रभावित किया है । किरण यादव , अनूप अरोरा सहित फ़िल्म के सारे किरदार ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है । फ़िल्म के निर्देशक विशाल वर्मा हैं जिन्हें अच्छा तकनीशियन कहा जाता है और उन्होंने बेटा में इसे प्रूव भी किया है । पूरी फ़िल्म एक भव्य कैनवास पर शूट की गयी लगती है । फ़िल्म के संगीतकार हैं ओम झा । हालांकि कई गानो में हिंदी फिल्मो की कुछ धुनों की झलक मिलती है लेकिन उन्होंने भोजपुरी फोक और हिंदी की धुनों का एक अच्छा मिश्रण तैयार किया है जो अच्छे फिल्मांकन की वजह से परदे पर देखने और सुनने में अच्छा लगता है ।ना तो गानो के बोल में और ना ही फिल्मांकन में कही अश्लीलता नज़र आती है । बारिश के एक गाने को भी सलीके से फिल्माया गया है । निर्माता विकास कुमार की यह दुसरी फ़िल्म है । पहली फ़िल्म साजन चले ससुराल 2 में भी अश्लीलता नज़र नहीं आई थी और फ़िल्म अच्छी चली थी । बेटा भी उसी राह पर है जो उन निर्माता निर्देशको को मुहतोड़ जवाब है जो कहते हैं भोजपुरी में साफ़ सुथरी फ़िल्म नहीं चलती है । अगर बड़े स्टार के साथ साफ़ सुथरी और अच्छी फिल्में बनायी जाए तो भोजपुरी फिल्में अपने ऊपर लगे अश्लीलता का दाग धोने में सफल होगी । बेटा को इसी बदलाव की आहट मान कर चलना चाहिए ।
उदय भगत
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