आजकल सम्पूर्ण देश मे जी एस टी की गूंज है । हर क्षेत्र इसे लेकर नफा नुकसान का आकलन करने में जुटा है । कुछ क्षेत्र की तो बल्ले बल्ले हो गई है तो कुछ क्षेत्र में निराशा का माहौल है । ऐसे में मनोरंजन जगत भी अपने उद्द्योग में दूरगामी परिणाम की आस लगाए बैठा है । जहां तक क्षेत्रीय सिनेमा की बात है हर सिनेमा उद्द्योग के अपने अलग अलग नफा नुकसान है लेकिन भोजपुरी फ़िल्म जगत के लिए जी एस टी वरदान साबित हो रहा है ।
टिकट के दाम में कटौती
चूंकि भोजपुरी सिनेमा सिंगल स्क्रीन में लगती है और कहीं भी टिकट दर 100 रुपये से ऊपर नही है इसीलिए जी एस टी लागू होते ही भोजपुरी के सिनेमाघरों में टिकट दर में कटौती कर दी ,खास कर उत्तर प्रदेश के सिनेमा घरों ने । बनारस के आनंद चित्र मंदिर में तो यह कटौती बीस रुपये तक कर दी गई । अब यहां प्रथमदृष्टया यही लगेगा कि टिकट की दरों में कटौती से नुकसान फ़िल्म निर्माताओं को होगा ? लेकिन ऐसा है नही । भोजपुरी फ़िल्म जगत का फार्मूला अन्य फ़िल्म जगत से कुछ अलग है । यहां दर्शको का रुझान फ़िल्म की गुणवत्ता पर होता है । महिला दर्शक तभी सिनेमा घरों में आती है जब उन्हें आस पड़ोस के लोगो से पता चलता है कि फ़िल्म अच्छी यानि लेडीज़ फ़िल्म है । टिकट दर कम होने से अच्छी फिल्मो के दर्शको के तादात में बढ़ोतरी होगी । यहां रिपीट ऑडिएंस जैसे शब्द भी बहुत प्रचलित हैं । मतलब एक ही फ़िल्म को कई बार देखने वाले दर्शको की तादात काफी है । टिकट दर कम होने से दर्शको की रिपीट संख्या में बढ़ोतरी होगी ।
टेक्स में कटौती से बिहार के सिनेमा घरों को नुकसान
हर राज्य में मनोरंजन टेक्स का अपना अलग अलग नियम है । बिहार में सिनेमा घरों में कंपाउंड टेक्स का प्रावधान राज्य सरकार ने किया था । मतलब शहर और सिनेमा घरों की क्षमता के हिसाब से एक फिक्स टेक्स निर्धारित किया गया था । हर सिनेमा घरों का अपना अलग टेक्स है । जी एस टी लागू होने से पहले अगर सिनेमा हॉल का टिकट 40 रुपये का है तो नेट कलेक्शन मात्र 16 रुपये माना जाता था । बचे हुए 24 रुपये में 2 रुपये सिनेमा घरों की मरम्मती या मेंटेनेंस के नाम पर सिनेमा हॉल मालिक को मिलता था । बाकी के 22 रुपये में से सिनेमा घर मालिक टेक्स भरते थे । एक आकलन के अनुसार यह टेक्स प्रति टिकट वसूले गए टेक्स से काफी कम हुआ करता था । यानि इन पैसों में अधिकांश पैसा सिनेमा घरों के पास रह जाता था ।
अब नेट 16 रुपये में से सिनेमा घर अपना कमीशन काट कर वितरक को देते थे । अगर 30 प्रतिशत कमीशन सिनेमा घरों का निर्धारित होता है तो साढ़े 4 रुपये रख कर बाकी साढ़े 11 रुपये वितरक के पास आता था । अगर वितरक ने फिल्म कमीशन पर ले रखी है तो अपना कमीशन काट कर लगभग 10 रुपये फ़िल्म निर्माता को देता है ।
जी एस टी के बाद के हालात
जी एस टी लागू होने के बाद हालात में काफी परिवर्तन आया है । अब उसी 40 रुपये के टिकट पर जी एस टी लागू होने पर रेट घटकर 30 रुपये भी हो जाता है तो निर्माता को 24 रुपये मिलेंगे । अब इन 24 रुपये में आपसी सहमति से 2 रुपये हाल के मेंटेनेंस के लिए सिनेमा हॉल मालिक रखते हैं तो बचे 22 रुपये । इन 22 रुपये में अगर सिनेमा हॉल मालिक 40 प्रतिशत तक कमीशन लेती है तो वितरक को 14 रुपये मिलते हैं और वे अपना कमीशन काटे तो भी निर्माता को 12 रुपये मिलेंगे । यानि टिकट की दर में 10 रुपये की कटौती पर भी निर्माता को 12 रुपये मिलेंगे । मतलब प्रति टिकट 2 रुपये का फायदा ।
कहाँ होगा घपला ?
चूंकि सभी सिंगल स्क्रीन में मैन्युअल टिकट बेचा जाता है और निर्धारित क्षमता से अधिक टिकट बेचा जाता है इसीलिए प्रशासन की मिली भगत से सिनेमा हॉल मालिक हाउस फूल होने पर एक्सट्रा सीट को काउंट नहीं करेंगे । ( बिहार में किसी किसी सिनेमा हॉल में 300 तक एक्सट्रा सीट की जगह उपलब्ध है ) । जिससे नुकसान निर्माता को होगा । अगर सिनेमा घरों का कंप्यूटरीकरण कर दिया जाए तो यह नुकसान वरदान में बदल जायेगा ।
चूंकि भोजपुरी फिल्मो का सबसे बड़ा बाजार बिहार ही है इसीलिए जी एस टी का फायदा भोजपुरी फ़िल्म जगत को होना तय है । अब फ़िल्म निर्माता , वितरक की जिम्मेवारी बनती है कि वो इस फायदे को किस हद तक अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं ।
- उदय भगत
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