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Saturday 10 October 2020

स्तरविहीन पत्रकारिता : काला अक्षर , पहले और अब ?

Written By Uday Bhagat
  पिछले कुछ दिनों से टीवी चैनल पर टी आर पी वार चल रहा है । टी आर पी के फर्जीवाड़े को लेकर सभी न्यूज़ चैनल बौखलाए हुए हैं । खुलेआम नाम लेकर चैनल एक दूसरे पर भड़ास निकालने में लगे हैं । अखबारों के भी यही हाल है । राजनीतिक खेमे में बंटकर अपने अपने आका की लाल करने में लगे हैं । ऐसे में खबरों का स्वरूप क्या होगा ? कितनी निष्पक्षता होगी ? अगर कुछ साल पहले और आज की पत्रकारिता की बात मैं अपने अनुभव के आधार पर करू तो अंतर समझ मे आ जायेगा । बरसो पहले मैं अखबारों में पाठकों के कॉलम में रोजाना कुछ न कुछ लिखता था । उस दौर में उसे पत्रलेखक कहा जाता था  । चूंकि मैं बिहार से हु तो वहां के अखबार हिंदुस्तान और आज में लगभग रोजाना मेरे पत्र छपते थे । हमारा मुकाबला कंकड़बाग पटना के हर्षवर्धन और सुनील सिंह यादव से था । हर्षवर्धन के पिताजी दैनिक हिन्दुतान में काम करते थे और सुनील हर्षवर्धन के मामा का लड़का था । दोनों अच्छा लिखते थे । उनकी राय अक्सर गली मोहल्ले की समस्या को लेकर होती थी तो मेरी राय में समस्याओं के अलावा देश विदेश की समस्या को लेकर भी होती थी ।खैर, उस दौरान हिन्दुतान में पाठकों के लिए एक दैनिक समस्याओं का स्तम्भ शुरू किया जिसका नाम था आपबीती । इस स्तम्भ में कोई भी पाठक किसी विभाग से होने वाली परेशानी का जिक्र करता था और सबसे अच्छी बात थी कि हिंदुस्तान उसे प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित करता था । मैं उस समय पटना में पढ़ाई कर रहा था और अक्सर शाम के वक्त खासमहल इलाके के नवरंग शू स्टोर के मालिक शंकर जी के साथ गप्पे लड़ाया करता था । बदकिस्मती से शंकर जी की माता जी बीमार हुई और उन्हें पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में एडमिट कराया गया था । उनके गोल ब्लाडर का ऑपरेशन होना था जिसके लिए खून की ज़रूरत थी । हम दस दोस्त खून देने हॉस्पिटल पहुचे लेकिन लैब वाले ने एक पर्ची लिखकर एक प्राइवेट लैब में भेजा जहाँ पनद्रह रुपये प्रति व्यक्ति ब्लड ग्रुप की जांच का लिया गया । यह बात मुझे काफी बुरी लगी । मैंने वही बैठे बैठे एक पन्ने में सारी बात लिखी और हिंदुस्तान के कार्यालय के लेटर बॉक्स में डाल दिया । अगले दिन " आखिर गरीब रोगी क्या करे " शीर्षक से अगले ही दिन वह छप गया ।  सुबह देख कर मैं काफी खुश हुआ , अचानक से दोपहर 12 बजे स्कूटर से मेरा पता ढूंढते ढूंढते एक आदमी मेरे पास आया और रोने लगा और बताया मेरी नौकरी बचा लीजिये । उसने बताया कि सुबह 9 बजे स्वास्थ्य मंत्री महावीर प्रसाद ने हॉस्पिटल का औचक निरीक्षण किया और लैब के सारे स्टाफ के खिलाफ कारवाई का आदेश दिया । ये जो इंसान आया था लैब का कर्मचारी था और प्राइवेट लैब जहां हमने जांच कराई थी उसका मालिक भी था । उस इंसान ने 1000 रुपये देने की कोशिश की लेकिन मैंने मात्र 150 रुपये लिए जो उस प्रायवेट लैब वाले ने हम दसों के खून का ग्रुप जांचने के एवज में लिया था । यह इकलौता उदाहरण नही है । कंकड़बाग पार्क की सफाई , लेटर बॉक्स , चापाकल सहित कई काम मैंने मात्र पत्र लिखकर करवाये थे ।यानि उन दिनों काले अक्षर का इतना महत्व था और आज ? अखबार के हेडलाइन से सामाजिक , आर्थिक और देश हित की खबरे गायब हो गई है । संपादकों से अधिक रुतबा मार्केटिंग हेड का हो गया है । वो बिना संपादक को बताए अखबार में पेड़ न्यूज़ डाल सकता है और कोई भी न्यूज़ निकलवा सकता है । ऐसा इसीलिए क्योंकि वह अखबार को आर्थिक फायदा दिलाता है । टीवी चैनलों का हाल तो और बुरा है । सबकी अपनी अपनी विचार धारा है , अपना अपना उद्देश्य है , ऐसे में जनहित का मुद्दा खत्म हो गया है । किससे  फायदा है ये देखा जाने लगा है । बहरहाल यह कहा जा सकता है कल का काला अक्षर दिखने में तो काला था पर उसका असर आम लोगों के लिए सुनहरा था लेकिन आज का काला अक्षर जिसे रंगीनियत ने अपनी चपेट में ले लिया है , वह काजल की कोठरी से निकले शब्द बन गए हैं।


कांग्रेस : हाथरस पर दंगा , करौली पर नंगा ? Hatras Vs Karauli

 Written By Uday Bhagat

एक सप्ताह पहले देसी विदेशी चैनल पर देश की सबसे सम्पन्न राजनीतिक परिवार की दो वारिस , कॉंग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और कॉंग्रेस के प्रायोजित प्रधानमंत्री राहुल गांधी और कॉंग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश की एक्सपर्ट प्रियंका वाड्रा का सियासी ड्रामा काफी चला था । अब जबकि उनके ड्रामे की पोल खुल चुकी है तो गांधी वाड्रा खेमे में सन्नाटा है । हाथरस की घटना की जितनी निंदा की जाए वो कम है , अगर सच मे लड़की से दुष्कर्म किया गया है तो आरोपी को फांसी की सजा मिले । मैंने सच मे इसीलिए लिखा क्योंकि हाथरस मामला काफी पेचीदा हो गया है । पीड़िता के पहले , दूसरे , तीसरे और मृत्यु पूर्व बयान में काफी अंतर है । हालांकि अदालत किसी भी मृतक के बयान को सच मानती है , यह अवधारणा है की मरता हुआ इंसान झूठ नहीं बोल सकता । लेकिन हाथरस कांड का जो भी सियासी ड्रामा हुआ वो किसी से छुपा नहीं है । रातों रात वेबसाइट बनना , उसमे आपत्ति जनक कंटेंट अपलोड करना और इन सबमे दिल्ली और बंगलोर को दंगो की आग में झोंकने वाले कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन की संलिप्तता ने मामले को नया मोड़ दे दिया है । ऐसा लगता है लोगो को ऐसी किसी वारदात का ही इंतजार था जिसमे पीड़िता दलित और आरोपी सवर्ण खासकर ठाकुर जाति का हो । यह शक इसीलिए भी पुख्ता होता है क्योंकि उसी दौरान बलरामपुर में भी एक दलित लड़की के साथ उनके पहचान वाले लड़के और उनके दोस्तों ने दरिंदगी की । बच्ची के साथ इस कदर हैवानियत की गई थी कि उसने दम तोड़ दिया । हाथरस की तरह यहां भी दुष्कर्म हुआ लेकिन आरोपी के मुसलमान होने के कारण यह मामला तूल नही पकड़ा , न कोई दलित संगठन आगे आई न गांधी वाड्रा भईया बहना के लिए यह कोई मुद्दा नज़र आया  । और तो और हाथरस कांड के बाद 25 लाख रुपये का मुआवजा देने वाली योगी सरकार ने भी कोई मुआवजे का एलान नही किया । पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया , अब केस चलेगा , चलता रहेगा । न्याय भविष्य के गर्त में दब जाएगा । खैर , ये तो हुई भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश की कहानी , अब आते हैं कॉंग्रेस के राज्य राजस्थान पर । एक महीने में 100 से भी अधिक बलात्कार , अधिकतर मामलों में आरोपी कुछ ऐसे ही जैसे बलरामपुर , आजमगढ़ , बुलंदशहर में थे । मीडिया में एक खबर और बस । प्रशासन चुप , नेता चुप , मीडिया में बस पेज नंबर दस के सिंगल कॉलम की न्यूज़ । इसी राजस्थान के करौली में एक भयावह घटना घटी जिसने पालघर कांड की याद ताजा कर दी । दबंग दलितों के एक समूह ने एक मंदिर के पूजारी को जिंदा जला दिया । कुछ मीडिया ने जोर शोर से इस मामले को उठाया तो कुछ ने चुप्पी साध ली । रविवार को जब पुजारी की मौत हुई तो कुछ मीडिया की नींद खुली और वहां का रुख किया । एक मीडिया ने अशोक गहलोत से इस बारे में सवाल पूछा तो मुख्यमंत्री महोदय ने हाथ जोड़कर सवाल को टाल दिया और आगे निकल गए  । इस मुद्दे को रिपब्लिक टी वी ने बड़ा मुद्दा बना दिया है । लोगो का हुजूम इकट्ठा होकर राजस्थान की कांग्रेस सरकार को कोस रही है कि मुख्यमंत्री या उसका कोई नुमाइंदा अभी तक क्यों नही आया ? लोगो मे रोष है कि आखिर कॉंग्रेस ये दोहरी नीति क्यों अपनाती है , यानी हाथरस में दंगा और अपने प्रदेश में नंगा क्यों हो रही है ? बहरहाल, आगे देखते हैं कॉंग्रेस इससे कैसे उबरती है ।


Friday 9 October 2020

Nirahua and Aamrpali in Aai Milan ki Rat

 https://youtu.be/Y6o7qKFH40U

टी आर पी के टोटके में उलझा देश , कौन है सच्चा कौन है झूठा ? TRP War R Bharat Vs Mumbai Police

Written By Uday Bhagat 

गुरुवार का दिन जिस दिन सभी चैनलों की साप्ताहिक टी आर पी और जी आर पी आती है , उस दिन सुबह सुबह बड़ी घटना घटी । न्यूज़ चैनल के नए बादशाह आर भारत की स्टिंग के आधार पर राहुल गांधी के सहयोगी और बाल्मीकि समाज के स्वयंभु नेता श्योराज जीवन को पुलिस ने पूछ ताछ के लिए बुलाया । जीवन ने खुफिया कैमरे के सामने हाथरस कांड के बहाने देश को दंगे की चपेट में भेजने की भरपूर प्लानिंग  का राज बयान कर दिया था । आर भारत के इस स्टिंग से टीम राहुल और टीम प्रियंका बैक फुट पर आ गई थी और आर भारत अपने चैनल पर इसे भुनाने में कोई कसर छोड़ नही रहा था । सुशान्त मुद्दे पर रिया का इंटरव्यू करके अपनी बरसो की बादशाहत गंवा चुकी आज तक पहले से ही सकते में थी , हाथरस कांड से टी आर पी अर्जित करने के लिए देश ने आज तक की एंकर चित्रा त्रिपाठी की मेहनत को देखा था , हालांकि आम लोगो ने चित्रा को उनकी हरकतों के लिए काफी ट्रोल किया था । सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट के  नीचे गालियों की बौछार की गई और आम आदमी पार्टी के विधायक कुलदीप कुमार से नजदीकी बाइट लेने के कारण कोरोना की चपेट में आई चित्रा ने खुद को कोरण्टाइन कर लिया यानि कुछ दिन अपने चैनल की करतूत की वजह से गालियों से दूर रहने की वजह उन्हें मिल गई । खैर , दोपहर होते होते आर भारत ने आज तक और ए बी पी न्यूज़ द्वारा तैयार की गई जमीन पर इतने चौके छक्के मारे की सारे चैनल की बुनियाद हिल गई । अचानक से मुम्बई पुलिस ने आनन फानन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा कि आर भारत और दो अन्य चैनल ने टी आर पी खरीदी है । कुछ गिरफ्तारियां हुई , आर भारत को नोटिस भेजने की बात हुई और सोशल मीडिया दो भागों में बंट गया । दिलचस्प बात तो यह है कि यहां भी वाम्पन्धी और तथाकथित सेक्युलर रिपब्लिक के विरोध में तलवार भांजते दिखे । दूसरी ओर , राष्ट्रवादी लोग असमंजस में दिखे लेकिन उनको मौका मिल ही गया , या कहे तो रिपब्लिक के हेड अर्नब गोस्वामी के आग उगलने से राष्ट्रवादियों को राहत मिली । हमेशा की तरह , अर्नब ने कुछ घंटे में ही सभी की मिट्टी पलीद कर दी और मुम्बई पुलिस को ही बैक फुट पर ला दिया । अर्नब ने बार्क के एफ आई आर की कॉपी के हवाले से पासा ही पलट दिया क्योंकि उसने अपनी शिकायत में रिपब्लिक का नही इंडिया टुडे समूह का नाम लिया था जो आज तक हेडलाइन्स टुडे जैसे चैनल चलाता है । दोपहर बाद से देर शाम तक सारे चैनल इसी टी आर पी के टोटके से जूझते रहे । अब अहम सवाल है कि मुम्बई पुलिस के आरोप में कितनी सच्चाई और कितना दम है । इस बात पर चर्चा से पहले हमें थोड़ा पीछे जाना होगा । पालघर में तीन साधुओं की पीट पीट कर हत्या के मामले में सबसे तेज आवाज अर्नब गोस्वामी की थी । दिल्ली के बाटला हाउस में तीन जेहादी आतंकवादी के मारे जाने पर फूट फूट कर रोने वाली सोनिया गांधी की तीन निर्दोष साधुओं की हत्या पर चुप्पी और कॉंग्रेस समर्थक उद्धव सरकार द्वारा मामले पर मामूली संज्ञान से आहत अर्नब ने सोनिया गांधी पर सवाल उठाए , नतीजा उन्हें मुम्बई पुलिस ने आठ घंटे तक पूछ ताछ की । फिर आया सुशान्त सिंह का मामला , यहां भी अर्नब ने मुम्बई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार की नींद हराम कर दी , यही नही शिवसेना के नेता संजय राउत की तो रातों की नींद अर्नब ने चुरा ली । इस बीच अचानक से रिपब्लिक भारत ने टी आर पी में सबको पीछे छोड़ दिया । आजतक जो दो दशक से नंबर 1 थी वो काफी पिछड़ गई । अर्नब और उनकी टीम का महाराष्ट्र सरकार और मुम्बई पुलिस पर हमला रुका नही था । गुरुवार यानि कल अचानक से मुम्बई पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अर्नब गोस्वामी को घेरने का प्रयास किया लेकिन यहां भी वे असफल ही दिख रहे हैं । मुम्बई जैसे महंगे शहर में जहां बिजली का प्रति यूनिट चार्ज भी अन्य शहर से अधिक है , कोई परिवार मात्र 400 या 500 के लिए अपना टी वी सेट क्यों आँन रखेगा ? वो भी सिर्फ एक चैनल के लिए ? मुम्बई पुलिस की यह थ्योरी बचकाना लगती है । जिस शहर में भिखारी भी रोज़ का 500 कमाता हो और अधिकांश आबादी शराब के साथ रोज़ 50 रुपये का नमकीन खा जाता हो वो 500 के लिए 600 की बिजली का बिल देगा ? खैर, ये तो जांच का विषय है लेकिन इस पूरे मामले में कई बिंदु सामने आ गए हैं । क्या राहुल गांधी की टीम के बाल्मीकि नेता जीवन की खबर से भटकाने के लिए कॉंग्रेस के दबाब पर उद्धव सरकार ने मुम्बई पुलिस को आगे खड़ा किया ? जब एफ आई आर में आज तक का नाम है तो पुलिस ने रिपब्लिक को क्यों निशाना बनाया ? बाकी के दो चैनल का नाम मुम्बई पुलिस ने पत्रकारों को क्यों नही बताया ?मुम्बई पुलिस के खुलासे के बाद जिस तरह कई टीवी चैनल ने रिपब्लिक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया उस से उनकी पिछड़ने की हताशा साफ दिख रही थी । बहरहाल , मुम्बई पुलिस ने रिपब्लिक को एक बार फिर से नंबर 1 बनाने का रास्ता दे दिया है क्योंकि आज तक के पोस्ट पर , दूसरे चैनलों के पोस्ट पर जिस तरह रिपब्लिक के समर्थन में लोग एक जुट दिख रहे हैं उसे देखकर अंदाज़ लगाना या कहना गलत नहीं होगा कि मुम्बई पुलिस ने टी आर पी के टोटके में देश को उलझा कर एक बार फिर आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है ।


Thursday 21 March 2019

होली के रंग में सराबोर नज़र आए सितारे

भोजपुरिया सितारों की होली


भोजपुरिया सितारों ने इस बार जम कर होली खेली । मेगा स्टार रवि किशन ने मुंबई के गोरेगाँव स्थित  गार्डन स्टेट में अपने सोसायटी के लोगों के साथ होली खेली । अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर उन्होंने कई फ़ोटो शेयर किया है जिनमें वे रंगो और गुलाल से  रंगे नज़र आ रहे हैं ।
इसी बिल्डिंग में रहने वाले भोजपुरिया सुल्तान के नाम से मशहूर राजू सिंह माही ने भी जम कर होली खेली ।

अपने फ़ेस्बुक अकाउंट पर शेयर किए फ़ोटो में वे हाथ में पिचकारी लिए नज़र आ रहे हैं । भोजपुरी फ़िल्मों की हॉट केक अंजना सिंह ने लखनऊ स्थित अपने घर में जम कर होली खेली । उन्होंने कई फ़ोटो शेयर की हैं जिनमें एक फ़ोटो में अपने दोस्तों के साथ ठंडाई का ग्लास उठाए नज़र आ रही हैं । अंजना ने बताया ये होली उनके लिए काफ़ी यादगार रही क्यूँकि ना सिर्फ़ गुलाल से रंग खेला बल्कि लखनऊ में होने के बावजूद उनके कई को स्टार उनसे मिलने आए जिनके मनोज सिंह टाइगर प्रमुख रहे ।